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ग्रामीण पत्रकार व पत्रकारिता

ग्रामीण पत्रकार
ग्रामीण पत्रकार
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ग्रामीण पत्रकारिता का, स्तर सबसे छोटा ।
कहने को कोई कुछ भी कहे, बातों में कोई बहलाए।
मौके के हालात जो देखे, सच्चाई समझ में आए।।
गाँव बसे हैं दूर-दूर में, वहाँ से खबरें लाना।
लिख पढ़ खबर भेजने का, सब खर्च नहीं मिल पाना।
अपनी पूंजी को गंवा के ‘भैया’, दिल मन ही मन रोता।
ग्रामीण पत्रकारिता————————————-।।
खबर गयी जब नहीं छपी, मन है बहुत खिसियाता।
लोगों के कहने सुनने पर, ऑफिस को फोन मिलाता।।
मिलती है फटकार वहाँ पर, खबर न तुम लिख पाते।
कितना पैसा लेकर आए, जो खबर लिए रिरियाते ।।
अख़बार के दम पर थाने में, उडवाते चाय समोसा।
ग्रामीण पत्रकारिता————————————-।।
कोटेदार-प्रधान का संग, थानेदार है खूब निभाता ।
यही आय के सीधे जरिया, इन पर नेह दिखाता।।
पत्रकार जो पुल बनकर, सबके संग मौज उडाए।
खबर प्रसार और विज्ञापन, सबमें आगे जाए।।
लेखक नहीं दलाल चाहिए, पूरा करे जो कोटा।
ग्रामीण पत्रकारिता———————————।।
कोई परिचय पत्र नहीं, कोई मिले नहिं सुविधाएँ।
अख़बार के दम पर गुंडई से, अपना काम चलाएँ।।
जिससे सौदा पटे नहीं, उसकी लिख खबर पठाओ ।
खबर प्रसार और विज्ञापन, नम्बर वन हो जाओ।।
जाने माने लोग बनोगे, होगा कद छोटे से मोटा ।
ग्रामीण पत्रकारिता———————————।।
ग्रामीण पत्रकारिता में, सम्मान नहीं अपमान है।
लोफड, गुंडों, लुच्चों की, हुई पत्रकार पहचान है।।
वास्तव में जो पत्रकार , वह रोजगार को रोते हैं।
खबर लिखे ना पेट भरे, बिन खबर चैन ना सोते हैं ।
‘परदेशी’ धर्म समझ बैठा, अमूल्य समय को खोता।
ग्रामीण पत्रकारिता———————————।।
रचयिता – सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’ ग्रामीण पत्रकार बघौली, हरदोई,
दिनांक- 04-04-12, रचना समय – 07:42 प्रात:, दिन- बुधवार, रचना स्थान- सहज जनसेवा केन्द्र सुन्नी

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