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दर्द-ए-ग्रामीण पत्रकारिता

ग्रामीण पत्रकार
ग्रामीण पत्रकार
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दर्द-ए-ग्रामीण पत्रकारिता
आओ किस्मत आप संवारे, अपनी प्रतिभा आज निखारें |
आन लाइन जुडकर ब्लॉगों से, अपने दिल की बात उचारें ||
यहाँ ना कोई विज्ञापन, ना प्रसार की ठेकेदारी |
समाचार की गारंटी, भेजी खबर तो छपनी सारी ||
करना है समाजसेवा तो, जन-जन की खबरें लाओ |
जब तक ना हो क्रिया कोई, तब तक यूँ लिखते जाओ ||
सामर्थ्यवान हों पढ़े लिखे, तो इंटरनेट विस्तारें |
आओं…………………………………………………||
मेरे मन की मंशा है, सब जन एकजुट बन जाना |
ग्रामीण पत्रकारिता का, सूर्योदय करके दिखलाना ||
अख़बार कर रहे शोषण जितना, उनको एहसास करावो |
बिन पैसों के मजदूरों को, मिल आजाद करावो ||
अपनी आज परेशानी को, लिखकर मन से निखारें |
आओं……………………………………………………||
‘परदेशी’ की मनोकामना, पत्रकारिता ऊँची हो |
कैरियर बने पत्रकारों का, आर्थिक स्थित नहिं नीची हो ||
अख़बार कमाते दाम रात दिन, पत्रकारों से बेगार कराते |
जंजाल कहें या पिंड रोग, हम इसको छोड़ न पाते ||
नयी परम्परा को लागू करने, परिवर्तन की वाट निहारें ||
आओं……………………………………………………||

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