Menu
blogid : 7365 postid : 4

जागो ! ग्रामीण पत्रकारों

ग्रामीण पत्रकार
ग्रामीण पत्रकार
  • 15 Posts
  • 46 Comments

जागो ! ग्रामीण पत्रकारों
दोस्तों ! ग्रामीण पत्रकारिता उसी तरह उपेक्षित है, जिस तरह शहर के आगे गाँव उपेक्षित है | सरकार की सुविधाएँ ग्रामीणों तक नहीं पहुंचतीं और अख़बार की सुविधाएँ ग्रामीण पत्रकारों तक नहीं पहुँचती | अगर पहुंची भी तो गाँव के मुखिया प्रधान के पास, पत्रकारों में उसके मुखिया बयूरोचीफ़ तक | आखिर लम्बे समय से यही खेल चल रहा है | विचार करने का विषय है कि आखिर यह तिलिस्म कब तक कायम रहेगा ?
साथियों ! अपने अधिकार की लड़ाई आखिर कब लड़ोगे ? बस या तो आप अख़बार की कार्यशैली से संतुष्ट हैं या फिर इस मिशन में कोई दिलचस्पी नहीं | फ़िलहाल मैं तो एक सिरफिरा ‘ग्रामीण पत्रकार’ हूँ जो ग्रामीण पत्रकारिता के बारे में ही सोचा करता हूँ | अरे मेरे प्यारे दोस्त ! मेरे पूज्य पिताजी ने खेती ना बनाई होती तो यह मेरे विचार ताख पर रखे रह जाते और जिस आदर्श को बघार रहा हूँ | उससे कोसों दूर होते | देखता हूँ कि आज समाचार के संकलन से लेकर प्रेषण तक का खर्च ‘ग्रामीण पत्रकारों’ को झेलना पड़ता है | अख़बारों के दप्तर में जाते हैं तो वहाँ के वरिष्ठ पत्रकार बड़ी ही हीन भावना से मुंह बिजलाकर ‘ग्रामीण पत्रकार’ से बात करते हैं | ब्यूरो चीफ तो इस कदर पेश आते हैं जैसे इन्ही के सहारे ‘ग्रामीण पत्रकार’ अपनी जिन्दगी काट रहा है | नजदीकी से देखा परखा और आपबीती से जुडी कुछ घटनाओं से प्रेरणा ली | सब का निचोड़ यही निकला कि ‘ग्रामीण पत्रकार’ उपेक्षित है | आज बस इतना लिखकर —————-हम यह जानना चाहते हैं कि हम जैसे पत्रकारों के विचारों से कितने लोग सहमत हैं ————-आपके मन में है कोई विचार तो हमारे हौंसलों को पस्त करने या फिर और बुलंद करने के लिए सम्पर्क करें सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’  email- graminptrkar@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply